बचपन


बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी |
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त ख़ुशी मेरी ||

सुभद्रा कुमारी चौहान की ये कविता, मेरी सबसे पसन्दीदा कविताओं में से एक है। अगर कोई मुझसे पूछे, तुम्हें जीवन का एक दौर वापस जीने का मौका मिले, तो तुम कौनसा दौर चुनोगी। मेरा जवाब होगा, बचपन
काश हमें ऐसा एक अवसर मिलता ! 
बीते पलों को हम वापस बुला तो नहीं सकते, पर हाँ उन्हें जी ज़रूर सकते हैं। रिक्रिएट कर सकते हैं। बचपन लौटकर नहीं आ सकता, पर बच्चों के ज़रिये दोबारा जिया ज़रूर जा सकता है।
कई वजहों से हम अपने दैनंदिन जीवन में इतने व्यस्त हो गए हैं कि बच्चों के साथ हम बहुत कम समय बिताते हैं।  व्यवसाय और अन्य कई वजहों से हमारे संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं। एकल हो रहे हैं। इससे बच्चे संयुक्त परिवार में मिलजुल कर रहने और पारिवारिक मूल्यों को सीखने, भावनाओं को समझने के अवसरों को गवा रहे हैं। इन्हीं वजहों से बच्चे खिन्नता के शिकार भी हो रहे हैं।
इसका समाधान भी हम सबके पास  है।
यदि हम अपने व्यस्त जीवन से बच्चों के साथ थोड़ा-सा भी वक़्त बिताएं, उनके जीवन का हिस्सा बनें, बच्चों की ख़ुशी में शरीक हों तो हम भी बचपन को दोबारा जी सकते हैं।
दफ्तर से थके-हारे घर पहुँचते वक़्त सोसायटी के पास यदि हमें बच्चे खेलते नज़र आएं तो , हमभी उनके साथ बच्चा बनकर कुछ समय बिताने से ,उनके साथ खेलने ,या उन्हें खेलते हुए देखने से हम काफी तरोताज़ा और तनाव मुक्त महसूस कर सकते हैं।
घर आते ही, मनोरंजन के लिए टीवी, लैपटॉप, या मोबाइल की शरण में न जाकर, यदि हम बच्चों के साथ वक़्त बिताएं, उनकी मासूमियत को सराये, उनके साथ खेलें, उनके नए आविष्कार में उनका साथ दें, उन्हें कहानियां सुनाएं, स्कूल में हुई आप बीती सुनें,  उनकी जीत को मिलकर मनाये , हार में हौसला दे और उनकी पागलपंती में दोस्त बनके उनके साथ खेले  तो, बच्चों की ख़ुशी का पारावार नहीं होगा और उनके ज़रिये अनजाने में हम अपने बचपन भी जी लेंगे।
 तनाव दूर करने के लिए हम बाहरी ज़रियों को तलाशते हैं, जबकि इसका समाधान तो हमारे पास ही यानी , हमारे इर्द-गिर्द ही है। तो चलिए बच्चों के साथ बच्चे बनकर खेलें और अपनी बचपन को दोबारा जी लें। जैसे सूरज डूबता है, वापस उगने के लिए, वैसे ही बच्चों के साथ हँसने-खेलने से बचपन भी लौट आता है, हर उम्र में...

आजा बचपन एक बार फिर, दे दे अपनी निर्मल शान्ति |
व्याकुल व्यथा मिटाने वाली वह अपनी प्रकृत विश्रांति ||





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