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Showing posts from September, 2019

बचपन

बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी | गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त ख़ुशी मेरी || सुभद्रा कुमारी चौहान की ये कविता , मेरी सबसे पसन्दीदा कविताओं में से एक है। अगर कोई मुझसे पूछे , तुम्हें जीवन का एक दौर वापस जीने का मौका मिले , तो तुम कौनसा दौर चुनोगी। मेरा जवाब होगा , बचपन । काश हमें ऐसा एक अवसर मिलता !   बीते पलों को हम वापस बुला तो नहीं सकते , पर हाँ उन्हें जी ज़रूर सकते हैं। रिक्रिएट कर सकते हैं। बचपन लौटकर नहीं आ सकता , पर बच्चों के ज़रिये दोबारा जिया ज़रूर जा सकता है। कई वजहों से हम अपने दैनंदिन जीवन में इतने व्यस्त हो गए हैं कि बच्चों के साथ हम बहुत कम समय बिताते हैं।   व्यवसाय और अन्य कई वजहों से हमारे संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं। एकल हो रहे हैं। इससे बच्चे संयुक्त परिवार में मिलजुल कर रहने और पारिवारिक मूल्यों को सीखने , भावनाओं को समझने के अवसरों को गवा रहे हैं। इन्हीं वजहों से बच्चे खिन्नता के शिकार भी हो रहे हैं। इसका समाधान भी हम सबके पास   है। यदि हम अपने व्यस्त जीवन से बच्चों के साथ थोड़ा-सा भी वक़्त बिताएं , उनके जीवन का हिस्सा बनें , बच्चों की ख़ुशी

हिंदी स्वादानुसार

विदेश यात्रा करने की मेरी इच्छा भारत भ्रमण कर पूरी हुई और विविध भाषाओं को सीखने का मेरा मोह , हिन्दी के अलग - अलग स्वरूपों को अनुभव करने में पूरी हुई। मैं अपने जीवन में हिन्दी से हमेशा जुड़ी रही हूं। मैं मूलतः कर्नाटक के बेंगलूरु से हूं । बेंगलूरु के स्थानीय लोग अपनी दैनंदिन बातचीत में जितना कन्नड़ का प्रयोग करते हैं , उससे कहीं अधिक हिन्दी का इस्तेमाल करते हैं । जैसे एक शिशु को अपनी मातृ भाषा को सीखने में कोई कठिनाई नहीं होती है , वैसे ही हिन्दी सीखना मेरे लिए कभी मुश्किल नहीं रहा। हमारी पाठशाला में 10 वीं तक हिन्दी पढ़ाई जाती थी। मेरे हिन्दी सीखने में पंचतंत्र की कहानियों की बड़ी भूमिका है। दरअसल , होता ऐसे था कि पाठशाला में हर सप्ताह हमें एक क्लास में पंचतंत्र की कहानियां सुनानी होती थीं। हम वो कहानियां अच्छे से सुना पाएं , इसलिए अच्छे से पढ़ते और याद करते थे। अपनी प्रस्तुति से अपने सहपाठियों पर प्रभाव छोड़ पाएं , इसलिए तैयारी भी अच्छे से करते थे। इस तरह मैं बचपन से ही हिन्दी से जुड़ गई और हिन्दी मुझसे। वह दूरदर्शन का दौर था। उस ज़माने में दूरदर्शन के अलावा दूसरे चैनल नहीं